Thursday, December 15, 2016

तनाव से बचाव...

            
            दोस्तों का एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने के बहुत दिनों बाद मिला ।  सभी मित्र अच्छे केरियर के साथ पर्याप्त पैसे कमा रहे थे । वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर के घर जाकर मिले । प्रोफेसर साहब उनके काम के बारे में पूछने लगे । धीरे-धीरे बात लाइफ में बढ़ती स्ट्रेस और काम के प्रेशर पर आ गयी । यहाँ इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि, भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों पर उनकी लाइफ में अब वो मजा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था ।

           प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे,  वे अचानक ही उठे और थोड़ी देर बाद किचन से लौटे और बोले, "डीयर स्टूडेंट्स, मैं आपके लिए गरमा-गरम कॉफ़ी बना कर आया हूँ, लेकिन प्लीज आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्स लेते आइये।"

            लड़के तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा कप उठाने में लग गये, किसी ने क्रिस्टल का शानदार कप उठाया तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्ट किया, और किसी ने शीशे का कप उठाया।  
             
            सभी के हाथों में कॉफी आ गयी तो प्रोफ़ेसर साहब बोले, "अगर आपने ध्यान दिया हो तो, जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे आपने उन्हें ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्स की तरफ ध्यान नहीं दिया । जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्छे की चाह रखना एक नॉर्मल बात है, वहीँ दूसरी तरफ ये चाहत ही हमारी लाइफ में प्रॉब्लम्स और स्ट्रेस भी लेकर आता है ।

             फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि कप, कॉफी की क्वालिटी में कोई बदलाव नहीं लाता । ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है । असल में जो आपको चाहिए था वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं, पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।" 

           अब इस बात को ध्यान से सुनिये "ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है; हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह हैं । ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं ! और हमारे पास कौन सा कप है ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चेंज करता है । कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं ।"

            "दुनिया के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है, बल्कि वे होते हैं, जिनके पास जो कुछ भी होता है वे बस उसका अच्छे से इस्तेमाल करते हैं, एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं ! सादगी से जियो, सबसे प्रेम करो, सबकी केअर करो, जीवन का आनन्द लो । यही भरपूर आनंद के साथ जीवन जीने का सही तरीका है । Enjoy your  Life.
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Tuesday, August 23, 2016

प्रेरणा...!


           अमेरिका की बात है, एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा, उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया,  तमाम जमीन-जायदाद गिरवी रखना पड़ी,  दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था, कहीं से कोई राह नहीं सूझ रही थी, आशा की कोई किरण बाकि न बची थी । एक दिन वह एक Park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था, तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे ।

           बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी - बुजुर्ग बोले - "चिंता मत करो, मेरा नाम जॉन डी. रॉकफेलर है, मैं तुम्हे नहीं जानता, पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो, इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ ।”


           फिर जेब से चेकबुक निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले- “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम इसी जगह मिलेंगे  तब तुम मेरा कर्ज चुका देना ।”  इतना कहकर वो चले गए । युवक चकित था. रॉकफेलर तब अमेरीका के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे, युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किलें हल हो गई हैं ।


           उसके पैरो को पंख लग गये, घर पहुंचकर वह अपने कर्जों का हिसाब लगाने लगा,  बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है । अचानक उसके मन में ख्याल आया, उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझ पर भरोसा किया, पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ,  यह ख्याल आते ही उसने चेक को संभाल कर रख लिया,  फिर उसने निश्चय किया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा, पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से निकल जाए, उसके बाद भी अगर कोई चारा न बचे तो वो उस चैक का इस्तेमाल करेगा ।


           उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया. बस एक ही धुन थी, किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं । उसकी कोशिशे रंग लाने लगी. कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा । साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था । निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया, वह चेक लेकर रॉकफेलर की राह देख ही रहा था की वे दूर से आते दिखे, जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया, उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते हुए आई और झपट्टा मरकर उस वृद्ध को पकड़ लिया ।


            युवक हैरान रह गया । तब वह नर्स बोली, “यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता है और लोगों को जॉन डी. रॉकफेलर के रूप में चैक बाँटता फिरता हैं ।” अब तो वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान हो गया । जिस चैक के बल पर उसने अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा कर लिया वह फर्जी था ।


           पर यह बात जरुर साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे, हौंसले और प्रयास में ही होती है,  यदि हम खुद पर विश्वास रखें और आवश्यकता के मुताबिक प्रयत्न करते रहें तो यक़ीनन किसी भी बाधा अथवा चुनौति से निपट सकते है ।



Tuesday, August 16, 2016

कूडे का ट्रक (गार्बेज)

           एक दिन एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था। ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गयी। ऑटो चालक ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते टकराते बची। कार चालक गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा जबकि गलती कार- चालक की थी । 

           ऑटो चालक एक सत्संगी (सकारात्मक विचार सुनने-सुनाने वाला) था । उसने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते  हुए आगे बढ़ गया । 


           ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया । उसने तुम्हें भला-बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी। हमारी किस्मत अच्छी है,  नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते ।


           ऑटो वाले ने कहा साहब बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं । वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं । जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं  जैसे क्रोध, घृणा, चिंता, निराशा आदि । जब उनके दिमाग में इनका कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं । 


           इसलिए मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्कराकर अलविदा कह देता हूँ । क्योंकि अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा मैंने स्वीकार कर लिया तो मैं भी एक कूड़े का ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ साथ आसपास के लोगों पर भी वह कूड़ा गिराता रहूँगा । 


           मैं सोचता हूँ जिंदगी बहुत ख़ूबसूरत है इसलिए जो हमसे अच्छा व्यवहार करते हैं उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते उन्हें मुस्कुराकर माफ़ कर दो । हमें यह याद रखना चाहिए कि सभी मानसिक रोगी केवल अस्पताल में ही नहीं रहते हैं । कुछ हमारे आस-पास खुले में भी घूमते रहते हैं ।

 
           प्रकृति के नियम: यदि खेत में बीज न डाले जाएँ तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती है । उसी तरह से यदि दिमाग में सकारात्मक विचार न भरें जाएँ तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं और दूसरा नियम है कि जिसके पास जो होता है वह वही बाँटता है। "सुखी" सुख बाँटता है, "दु:खी" दुःख बाँटता है, "ज्ञानी" ज्ञान बाँटता है, भ्रमित भ्रम बाँटता है, और "भयभीत" भय बाँटता है । जो खुद डरा हुआ है वह औरों को डराता है, दबा हुआ दबाता है ,चमका हुआ चमकाता है, जबकि सफल इंसान सफलता बाँटता है ।



Monday, August 1, 2016

अनमोल रिश्ता...


            सुश्री वसुंधरा दीदी एक छोटे से शहर के  प्राथमिक स्कूल में  कक्षा 5 की शिक्षिका थीं । उनकी एक आदत थी कि वह कक्षा शुरू करने से पहले हमेशा "आई लव यू ऑल" बोला करतीं । मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं कहती । वह कक्षा के सभी बच्चों से उतना प्यार नहीं करती थीं । कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो वसुंधरा को एक आंख नहीं भाता । उसका नाम आशीष था । आशीष मैली कुचैली स्थिति में  स्कूल आ जाया करता । उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान । व्याख्यान के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता । वसुंधरा के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखने तो लग जाता.. मगर उसकी खाली-खाली नज़रों से उन्हें साफ पता लगता रहता कि आशीष शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब है ।
           
            धीरे  धीरे वसुंधरा को आशीष से नफरत सी होने लगी । क्लास में घुसते ही आशीष.. वसुंधरा की आलोचना का निशाना बनने लगा । सब बुराई के उदाहरण आशीष के नाम पर किये जाते । बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते और वसुंधरा उसको अपमानित करके संतोष प्राप्त करतीं । आशीष ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया । किन्तु वसुंधरा को वह एक बेजान पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर अहसास जैसी कोई चीज नहीं थी । प्रत्येक डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखता और सिर झुका लेता ।

            वसुंधरा को अब इससे गंभीर चिढ़ हो चुकी थी । पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो वसुंधरा ने आशीष की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें लिख मारी । प्रगति रिपोर्ट कार्ड माता-पिता को दिखाने से पहले प्रधानाध्यापिका के पास जाया करता था । उन्होंने जब आशीष की रिपोर्ट देखी तो वसुंधरा को बुला लिया । 

            "वसुंधरा... प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे आशीष के पिता बिल्कुल निराश ही हो जाएंगे।"        मैं माफी चाहती हूँ, लेकिन आशीष एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ भी अच्छा लिख सकती हूँ । वसुंधरा बेहद घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ आईं ।

            प्रधानाध्यापिका ने एक अजीब हरकत की । उन्होंने चपरासी के  हाथ वसुंधरा की डेस्क पर आशीष की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन वसुंधरा ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी । पलट कर देखा तो पता लगा कि यह आशीष की रिपोर्ट हैं । "पिछली कक्षाओं में भी उसने निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे ।"  उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली । रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है । "आशीष जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा ।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षकों से बेहद लगाव रखता है ।" अंतिम सेमेस्टर में भी आशीष ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है ।

            "वसुंधरा दीदी ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की रिपोर्ट खोली । "आशीष पर अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव पड रहा है ।  उसका  ध्यान पढ़ाई से हट रहा है ।"  "आशीष की माँ को अंतिम चरण का  कैंसर हुआ है । घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है, जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है ।"  आशीष की  माँ मर चुकी है और इसके साथ ही आशीष के जीवन की रमक और रौनक  भी । उसे बचाना होगा...इससे पहले कि  बहुत देर हो जाए । 

            "वसुंधरा के दिमाग पर भयानक बोझ तारी हो गया । कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की । आंसू उनकी आँखों से एक के बाद एक गिरने लगे । अगले दिन जब वसुंधरा कक्षा में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू ऑल" दोहराया । मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं । क्योंकि इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे आशीष के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में महसूस कर रही थीं..वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से हो ही नहीं सकता था । 

            व्याख्यान के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल आशीष पर दागा और हमेशा की तरह आशीष ने सिर झुका लिया । जब कुछ देर तक वसुंधरा से कोई डांट फटकार और सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में न पड़ी तो उसने गहन आश्चर्य से सिर उठाकर उनकी ओर देखा । अप्रत्याशित रुप से
आज उनके माथे पर बल न थे बल्कि वह मुस्कुरा रही थीं । 

            उन्होंने आशीष को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर दोहराने के लिए कहा । आशीष तीन चार बार के आग्रह के बाद अंतत: बोल ही पड़ा । इसके जवाब देते ही वसुंधरा ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी से भी बजवायी.. फिर तो यह दिनचर्या बन गयी । वसुंधरा अब हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर उसके पिछले वर्षों के रेकार्ड के साथ उसकी खूब सराहना व तारीफ करतीं ।  क्लास में अ
प्रत्येक अच्छा उदाहरण आशीष के कारण दिया जाने लगा ।  धीरे-धीरे पुराना आशीष सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आने लगा । 

            अब वसुंधरा को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना किसी त्रुटि के उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये-नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी करता । उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था । देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और आशीष ने दूसरा स्थान हासिल कर लिया यानी दूसरी क्लास । विदाई समारोह में सभी बच्चे वसुंधरा दीदी के लिये सुंदर उपहार लेकर आए और वसुंधरा की  टेबल पर ढेर लग गया । 

            इन खूबसूरती से पैक हुए उपहारों में  पुराने अखबार में बंद सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था । बच्चे उसे देखकर हंस पड़े । किसी को जानने में देर न लगी कि उपहार के नाम पर ये आशीष लाया होगा । वसुंधरा दीदी ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर उसे निकाला । खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं की इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक कड़ा था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे । वसुंधरा ने चुपचाप उस इत्र को खुद पर छिड़का और वह कंगन अपने हाथ में पहन लिया । सभी बच्चे यह दृश्य देखकर हैरान रह गए, खुद आशीष भी । आखिर आशीष से रहा न गया और वो वसुंधरा दीदी के पास आकर खड़ा हो गया । कुछ देर बाद उसने अटक-अटक कर वसुंधरा को बताया कि "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है ।"

            समय पर लगाकर उड़ने लगा। दिन सप्ताह, सप्ताह महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है ? मगर हर साल के अंत में वसुंधरा को आशीष से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला । मगर आप जैसा कोई नहीं था ।" 
फिर आशीष का स्कूल समाप्त हो गया और पत्रों  का सिलसिला भी । कई साल आगे और गुज़रे और अध्यापिका वसुंधरा अब रिटायर हो गईं । 

            एक दिन उन्हें अपनी मेल में आशीष का पत्र मिला जिसमें लिखा था-  "इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बगैर शादी की बात मैं नहीं सोच सकता । एक और बात .. मैं जीवन में बहुत से लोगों से मिल चुका हूँ किंतु आप जैसा कोई नहीं है....डॉक्टर आशीष  । इसके साथ ही विमान का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था । वसुंधरा खुद को रोक सकने की स्थिति में नहीं रह गई थी । 

           उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह दूसरे शहर के लिए रवाना हो गईं । ऐन शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं । उन्हें लगा अब तक तो समारोह समाप्त हो चुका  होगा..  मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा  न रही कि शहर के बड़े-बडे डॉ, बिजनेसमैन और यहां तक कि वहां मौजूद फेरे कराने वाले पंडित भी इन्तजार करते करते थक गये थे. कि आखिर कौन आना बाकी है...  मगर आशीष समारोह में फेरों और विवाह के  बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था । फिर सबने देखा कि जैसे ही यह पुरानी अध्यापिका वसुंधरा ने गेट से प्रवेश किया आशीष उनकी ओर तेजी से लपका और उनका वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह सड़ा हुआ सा कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा वेदी पर ले गया ।

            वसुंधरा का हाथ में पकड़ कर वह सभी मेहमानों से बोला "दोस्तो आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको अपनी माँ से मिलाऊँगा...! यही मेरी माँ  हैं !"

मित्रों...
            इस सुंदर कहानी को सिर्फ शिक्षक और शिष्य के रिश्ते के कारण ही मत सोचिएगा,  अपने आसपास देखें, आशीष जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार और स्नेह बिल्कुल नया जीवन भी दे सकता  है...!

Monday, July 18, 2016

खुशवंती सूत्र - परिपूर्ण जीवन यात्रा हेतु...


           इन  सूत्रों को पढ़ने के बाद पता चला कि सचमुच खुशहाल ज़िंदगी और शानदार मौत के लिए ये सूत्र बहुत ज़रूरी हैं... 
      
          1. अच्छा स्वास्थ्य - अगर आप पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, तो आप कभी खुश नहीं रह सकते । बीमारी छोटी हो या बड़ी, ये आपकी खुशियां छीन लेती हैं। 

          2. ठीक ठाक बैंक बैलेंस - अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए बहुत अमीर होना ज़रूरी नहीं । पर इतना पैसा बैंक में हो कि आप जब चाहें बाहर खाना खा पाएं, सिनेमा देख पाएं, समंदर और पहाड़ घूमने जा पाएं, तो आप खुश रह सकते हैं । उधारी में जीना आदमी को खुद की निगाहों में गिरा देता है ।

            3. अपना मकान - मकान चाहे छोटा हो या बड़ा, वो आपका अपना होना चाहिए । अगर उसमें छोटा सा बगीचा हो तो आपकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल हो सकती है ।

              4. समझदार जीवन साथी - जिनकी ज़िंदगी में समझदार जीवन साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को ठीक से समझते हैं, उनकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल होती है, वर्ना ज़िंदगी में सबकुछ धरा का धरा रह जाता है, सारी खुशियां काफूर हो जाती हैं । हर वक्त कुढ़ते रहने से बेहतर है अपना अलग रास्ता चुन लेना ।

             5. दूसरों की उपलब्धियों से न जलना - कोई आपसे आगे निकल जाए, किसी के पास आपसे ज़्यादा पैसा हो जाए, तो उससे जले नहीं । दूसरों से खुद की तुलना करने से आपकी खुशियां खत्म होने लगती हैं । 

               6. गप से बचना - लोगों को गपशप के ज़रिए अपने पर हावी मत होने दीजिए । जब तक आप उनसे छुटकारा पाएंगे, आप बहुत थक चुके होंगे और दूसरों की चुगली - निंदा से आपके दिमाग में कहीं न कहीं ज़हर भर चुका होगा । 

                7.  अच्छी आदत - कोई न कोई ऐसी हॉबी विकसित करें, जिसे करने में आपको मज़ा आता हो, मसलन गार्डेनिंग, पढ़ना, लिखना । फालतू बातों में समय बर्बाद करना ज़िंदगी के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा अपराध है । कुछ न कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे आपको खुशी मिले और उसे आप अपनी आदत में शुमार करके नियमित रूप से करते रह सकें ।

               8. ध्यान - रोज सुबह कम से कम दस मिनट ध्यान करना चाहिए । ये दस मिनट आपको अपने ऊपर खर्च करने चाहिए । इसी तरह शाम को भी कुछ वक्त अपने साथ गुजारें । इस तरह आप खुद को जान पाएंगे । 

               9. क्रोध से बचना - कभी अपना गुस्सा ज़ाहिर न करें । जब कभी आपको लगे कि आपका दोस्त आपके साथ तल्ख हो रहा है, तो आप उस वक्त उससे दूर हो जाएं, बजाय इसके कि वहीं उसका हिसाब-किताब करने पर आमदा हो जाएं ।

              10. अंतिम समय - जब यमराज दस्तक दें, तो बिना किसी दु:ख, शोक या अफसोस के उनके साथ निकल पड़ना चाहिए, अंतिम यात्रा पर खुशी-खुशी,  शोक,  मोह के बंधन से मुक्त हो कर जो यहां से निकलता है,  उसी का जीवन सफल होता है ।

              मुझे नहीं पता कि खुशवंत सिंह ने पीएचडी की थी या नहीं ।  पर इन्हें पढ़ने के बाद लगता है कि ज़िंदगी के डॉक्टर भी होते हैं । ऐसे डॉक्टर ज़िंदगी बेहतर बनाने का फॉर्मूला देते हैं । ये ज़िंदगी के डॉक्टर की ओर से ज़िंदगी जीने के लिए दिए गए महत्वपूर्ण नुस्खे हैं ।


Tuesday, July 12, 2016

नशीला गोपनीय वार्तालाप...!


            एक बार विभिन्न श्रेणी के तीन लोग बैठ कर बातें कर रहे थे और बड़ी ही जोर-जोर से  हंस रहे थे - उन में से एक किसी मीडिया चैनल का मालिक था, दूसरा एक विदेशी था और तीसरा कोई एक नेता  था ।

            सब से पहले विदेशी बोला - यहाँ के लोग तो मूर्ख हैं,  हमारा कूड़ा खाते हैं, हमारे कुत्तो के साबुन से नहाते हैं ।  हमारे बनाये कीटनाशकों को कोल्डड्रिंक के रुप में अमृत समझ के पीते  हैं । इनकी ही गौमाता को मारकर हम मैग्गी, लेज और इस जैसे सभी सामानों में मिलाते  हैं और ये मूर्ख ब्रांडेड समझ के मजे से खा  जाते हैं ।  नीम की दातुन को  छुङवा के लगा दिया कोलगेट घिसने पर,  जो बनती है जानवरों की हड्डी पिसने पर । 

            दीवाली जैसे त्यौहारों पर  भी अब ये हमारी चाकलेट कुरकुरे खाते हैं और अपनी ही गौमाता  के  दूध में मिलावट  बताते हैं ।  हम यहाँ बैठ कर इनको अपने इशारे पे नचवाते हैं,  राम सेतु आदि यहां  बैठ के तुडवाते  हैं ।  यह जो थे कभी दुनिया के मालिक, आज नौकर इनको बना दिया,  आसमान  से पटक कर मिट्टी में इनको मिला  दिया ।  पर  इन मूर्खो को अभी भी अक्ल  नहीं आई । आज भी ब्रांडेड से नहाते  हैं, ब्रांडेड खाते हैं, ब्रांडेड चलाते हैं, ब्रांडेड पहनते हैं । हा... हा... हा...  पूरे कमरे में गूंज रही  ठहाको की  फुलवारी थी ।

            अब - "विदेशी" के बाद " नेता" की बारी थी । दारु का गिलास  उठा के नेता बोला  अरे मेरे विदेशी भाई तुमने हमको कम तोला । ये लोग तुम्हारे गुलाम न होते हम अगर तुम्हारे साथ न होते । इस सोने की चिड़िया को हमने ही रुलाया है । यहाँ का साम्राज्य हमने ही तुम्हें दिलाया है । तुमने तो सिर्फ पैसा और सामान ही दिया है, असली पागल  तो इनको  हमने किया है । कभी -  जात के नाम पर,  कभी -   धर्म  के नाम पर,  हमने ही -  भाई को भाई से लड़ाया है । हम यहाँ सब-कुछ निचोड़ कर बिकवा  देंगे, तुम इत्मीनान रखना, बस पैसा कम न होने पाये, मेरे स्विस खाते  का ख्याल  रखना ।

            इसी बीच "मीडिया वाला" चिल्लाया - तोड़ दारु की बोतल  जोर से बङबङाया - अरे ! तुम दोनों कुछ भी न होते,  अगर तुम्हारे साथ हम न होते ? तुम्हारी हर ओछी हरकत हम छुपाते  हैं, पकड़े हुए किसी बेकसूर को, ज़ालिम-ज़ालिम कहकर चिल्लाते हैं । ब्रांडेड आपके इसलिए बिकते  हैं  क्योंकि हर ब्रेक  में हमारे ये दिखते  हैं ।  विदेशी सामान का असली सच  हम दिखाते नहीं हैं,  इसलिए -  अच्छे स्वदेशी प्रॉडक्ट भी टिक पाते  नहीं  हैं, लोगों को मतिभ्रम में हम -  फंसा रहे हैं  । इसीलिए -  आप सबको मुर्ख बना रहे हैं । हर चैनल, हर एंकर यहाँ बिकता  है । इसीलिए -  सुबह 6 बजे से हर जगह विदेशी प्रॉडक्ट दिखता है । अगर सिर्फ 24 घंटे हम ईमांनदारी से खबरें चला दें तो तुम्हें एक ही दिन में जेल  भिजवा दें...

            उपरोक्त स्थिति में सब हों या न हों किंतु इन माध्यमों में अधिकांश तो ऐसे ही  हैं । आपका क्या ख्याल है  ?
 मूल रचना सोर्स : WhatsApp.
  

Saturday, July 9, 2016

सामान्य मानव अधिकार से जुडी उपयोगी जानकारी...


            आप कोई भी हो – आप कुछ भी हो – ये 5 बातें जानना आपके लिए बहुत जरूरी है-

            बहोत सी ऐसी बातें- जिन्हें प्रायः हम ज़िंदगी में महत्व नहीं देते... “जाने दो, छोड़ो, बाद में देख लेंगे, हमें क्या करना है…” जैसे शब्दों का प्रयोग करके बातें भूल जाया करते है और ज़िंदगी में आगे बढ़ जाते है । लेकिन क्या आप जानते है– हमारे देश में सामान्य मानव अधिकार से जुडे इन मुद्दों की कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें हैं, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण  हम समय आने पर अपने सामान्य अधिकारों से वंचित रह जाते है ।

            जानिये  5 ऐसे सामान्य अधिकारों के बारे में, जो हममें से किसी के भी जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है-

1.  शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती-
            कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है ।

2. गेस सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है-
 
            पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते हैं. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है ।

            3. कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते हैं-

            इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तेमाल कर सकते हैं. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई  कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है ।

4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकला जा सकता-
            मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो  उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है ।

5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता-
            आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1  साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है ।

            इन रोचक फैक्ट्स को  आप तक WhatsApp के द्वारा मोबाईल to मोबाईल आगे बढाया जा रहा है ।  इन आवश्यक तथ्यों को आगे के लिये भी अपने ध्यान मैं रखना, हर किसी के लिये उपयोगी ही रहेगा क्योंकि हमारे सामान्य अधिकारों के रुप में ये किसी के भी जीवन में कभी भी किसी महत्वपूर्ण अवसर पर काम में आ सकते हैं ।

जानकारी सौजन्य :  WhatsApp

Wednesday, July 6, 2016

मेरे स्नेही मित्रो...


            सेवा के इस अनूठे आयोजन से खुद को जोडें । वर्तमान के मोसमी फल जैसे आम, जामुन, चिकू इत्यादी जिनका हममे से कोई भी उपयोग करने के बाद कृपया इनके बीज फेंके नही, बल्कि इन्हें पानी से धोकर एक प्लास्टीक की थैली में रखते चलें और जब भी आप शहर से बाहर जावें- तब जहां भी सूखी बंजर भूमि दिखे वहीं पर इन बीजों को फेंकें, अथवा सडक के ऐसे ही किसी किनारे पर फेंकें । यदि हमारे इस सुकृत्य से एक बीज भी पनप कर पेड बन जाता है तो समझें हमारा उद्देश्य सफल हो गया । यह किसी अकेले व्यक्ति का विचार नही हे बल्कि महाराष्ट्र और कर्नाटक मे बहुत से लोग इस अद्भुत मिशन से जुडे हैं । आज सुबह ही एक लेख पढने के पश्चात ऐसा लगा कि क्यों  न  हम सभी साथी इस मिशन से जुडें एवम् इसे अपनी एक आदत बनालें । इसके अलावा...

 जिस दिन भी हम मरेंगे...अपने साथ एक पेड़ भी लेकर जलेंगे
 इसलिये प्रकृति का जो कर्ज रहेगा हम पर  वो तो चुका दो यारों...
जीते जी दो पेड़ तो लगा दो यारों...!

            आप सबसे निवेदन है, यह मैसेज सिर्फ तीन से पांच लोगों तक जरूर भेजें... और उन लोगों से भी कहें कि यह मैसेज आगे तीन से पांच लोगों को भेजें, हम सब बलिदान ना सही पर देश के लिए इतना छोटा सा काम तो कर ही सकते है,,,

1. कचरा सड़क पर ना फेंकें ।
2. सड़कों, दीवारों पे ना थूकें ।
3. नोटों, दीवारों पर ना लिखें ।
4. गाली देना छोड़ दें ।
5. पानी एवम् लाइट बचाएँ ।
6. एक पौधा लगाएँ ।
7. ट्रेफिक रूल्स ना तोडें ।
8. रोज़ माता पिता का आशीर्वाद लें ।
9. लड़कियों की इज्जत करें ।
10. एम्बुलेंस को रास्ता दें ।

देश को नहीं, पहले खुद को बदलें । 

            यदि हम चाहते हैं कि हमारी संतानों को आने वाले समय में रहने को साफ व सुरक्षित माहौल मिले तो हमें इन छोटे-छोटे नियमों को अनिवार्य रुप से अपनी आदत बना लेना चाहिये वर्ना कोई भी मोदी, गांधी अथवा केजरीवाल जैसे नेता भी अकेले कुछ सुधार नहीं कर पाएंगे जब तक कि इन छोट-छोटे सामान्य नियमों को हम सभी अपनी जीवनचर्या का आवश्यक अंग ना बना लें । धन्यवाद...

            A very humble request to all. Send this message at least to five persons and ask them to further send to Three to five persons and keep the chain going...

           1. Don't throw garbage on the roads/streets
           2. Don't spit on roads and walls
           3. Don't write on walls and currency notes
           4. Don't abuse and insult others
           5. Save water and electricity
           6. Plant a tree
           7. Follow traffic rules
       8. Take care of your parents n grand parents, take their blessings       &    always respect them
           9. Respect women
         10. Give way to ambulance

          We got to change ourselves and not the country. Once we change ourselves the country will automatically change,

           If we want our kids to live in a clean and safe environment then pledge to follow these in your everyday life.

           Whether it's Modi or Gandhi or Kejriwal no person or leader can change the country alone, it's you & me who can change our beloved nation by changing ourselves

          *   Kindly forward this important message to every single Friend or Group so that reaches to every citizen of India.
Thanks.  *
 



Sunday, July 3, 2016

असफलता V/s, सफलता...!


            5 वर्ष की उम्र में उसके पिता का निधन हो गया । 16 वर्ष की उम्र में उसका स्कूल छूट गया । 17 वर्ष की उम्र तक वह असंतुष्ट अवस्था में 4 बार जॉब बदल चुका था । 18 वर्ष की उम्र में उसकी शादी हो गई । 18 से 22 वर्ष की उम्र में उसने रेल्वे में कंडक्टर की नौकरी में फैल रहने के बाद सेना में नौकरी करने की कोशिश की और वहाँ से भी उसे निकाल दिया गया । उसने वकालत पास करने की कोशिश की वहाँ भी वह रिजेक्ट हुआ । फिर उसने इंश्योरेंस एजेंसी में प्रयास किया और वहाँ भी असफल ही साबित हुआ । 

            पारिवारिक जीवन में 19 वर्ष की उम्र में वह एक कन्या का पिता बना किंतु 20 वर्ष की उम्र में उसकी पत्नी उस कन्या को उसके पास छोडकर किसी अन्य पुरुष के साथ चली गई । उसने एक छोटे रेस्टोरेंट में कप-प्लेट धोने से शुरु करके कुक का काम किया । उसकी पुत्री का अपहरण हो गया और उसे भी वह बचा नहीं पाया । किंतु फिर भी संयोगवश उसने अपनी पत्नी को अपने साथ रहने के लिये राजी कर लिया ।

            65 वर्ष की उम्र में वह रिटायर हो गया और उसके रिटायरमेंट पर संस्थान ने उसके पास सिर्फ 105 डॉलर का चैक इस नोट के साथ भेजा कि इससे आगे व अधिक उसकी कोई पात्रता नहीं बनती । 

            थक-हारकर उसने आत्महत्या कर लेने का निर्णय किया । लगभग सारा जीवन हर जगह असफल रहने के कारण उसका जीवन के प्रति समस्त मोह भंग हो चुका था । उसने एक पेड के नीचे अपनी वसीयतनुमा ईच्छा लिखकर जब फांसी लगाने का प्रयास किया तब अचानक उसके मन में यह विचार आया कि जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जो उसने अभी तक नहीं किया है । 

            अपने कुकिंग जॉब के दौरान वो यह महसूस करता था कि उसके बनाये हुए चिकन की रेसिपी को लोग पसन्द करते थे । तब उसने उस चेक को भुनवाकर 87 डॉलर इन्वेस्ट करते हुए कुछ चिकन के छोटे-छोटे पैकेट बनाकर केंचुकी फ्रॉयड चिकन के नाम से डोअर-टू-डोअर बेचने का काम फिर शुरु किया और इस बार उसे लोगों से धीरे-धीरे अच्छा प्रतिसाद मिलने लगा । 

            चलते-चलते जहाँ वह शख्स 65 वर्ष की उम्र में आत्महत्या करने को उद्धृत था वहीं 88 वर्ष की उम्र में कोलोनेल सेंडर्स का नाम फाउंडर ऑफ केंचुकी फ्रॉयड चिकन (KFC) के रुप में विश्व भर में बिलेनियर्स के रुप में स्थापित हो चुका था ।

            कथासार यही है कि जब तक जीवन है कोई भी व्यक्ति कभी भी कहीं भी नई शुरुआत कर सकता है । प्रयास कभी भी अंतिम नहीं होते । न ही यह बात मायने रखती है कि आपने उसके लिये कितनी कठोर मेहनत की । इंसान का काम है - चलते रहना, प्रयासरत रहना, वांछित परिणाम न मिलने पर तरीकों में बदलाव करते रहने के साथ पुनः-पुनः प्रयास करते रहना । लक्ष्य व स्वप्नपूर्ति के लिये कोई भी उम्र कभी भी अंतिम नहीं होती ।
 

Thursday, June 30, 2016

आरक्षण का दंश...

           
            एक सज्जन से एक सवाल पूछा गया कि भारत में जनरल कैटेगरी वाला होने पर आपका क्या अनुभव है तो उन्होंने जो जबाब दिया, उसे पढ़िए........(हिंदी में अनुवाद)

           प्रवेश परीक्षा:
         मेरा स्कोर :192, उसका स्कोर :92, जी हाँ हम एक ही कॉलेज में पढ़े.....

           College Fees,
         मेरी हर सेमिस्टर की फी 30200, (मेरे परिवार की आय 5 lacs से कम है..) उसकी हर सेमिस्टर की फी 6600. (उसके माता और पिता दोनों अच्छा कमा रहे हैं......) जी हाँ हम दोनों एक ही होस्टल में रहते थे...

          Mess Fees,
         मैं 15000/- हर सेमिस्टर के देता था.... वो भी 15000 हर सेमिस्टर के देता था, लेकिन सेमिस्टर के अंत में वो उसे रिफंड होते थे..... जी हाँ हम एक ही मेस में खाते थे....

          Pocket Money,
         मेरा खर्चा 5000 था जो कि मैं ट्यूशन और थोड़ा बहुत अपने पिता से लेता था... वो 10000 खर्चा करता था जो कि उसे स्कॉलरशिप के मिलते थे... जी हाँ हम एक साथ पार्टी करते थे....

          CAT 2015,
        मेरा स्कोर : 99 percentile. (किसी IIM से एक मिसकॉल का इंतज़ार रहा.) उसका स्कोर : 63 percentile. ( IIM Ahemedabad के लिए सलेक्ट हुआ) जी हाँ ऐप्टीट्यूड और रीजनिंग उसे मैंने पढ़ाया था....

          OIL Campus recruitement,
          मैं : Rejected. (My OGPA 8.1) वो : selected. (His OGPA 6.9) जी हाँ हमने एक ही कोर्स पढ़ा था...

          GATE Score,
       मेरा स्कोर : 39.66 (डिसक्वालीफाईड सो INR 1,68,000 की स्कॉलरशिप भी हाथ से गई) उसका स्कोर : 26 (क्वालीफाईड और INR 1,68,000 के साथ-साथ अतिरिक्त स्कॉलरशिप भी) जी हाँ हमने एक जैसे नोट्स शेयर किये थे..

            कौन हूँ मैं ? मैं भारत में एक जनरल कैटेगरी का छात्र हूँ...

            दिमाग में बस कुछ सवाल हैं.....

            क्या उसके पास चलने के लिए दो पैर नहीं हैं ? क्या उसके पास लिखने या काम करने के लिए दो हाथ नहीं हैं ? क्या उसके पास बोलने के लिए मुंह नहीं है ? क्या उसके पास सोचने के लिए दिमाग नहीं है ? अगर हैं तो फिर हम दोनों को एक जैसा ट्रीटमेंट क्यों नहीं मिलता ? 

          ये बात राजनितिक पार्टीयो के बजाय देश के सम्माननीय न्यायालय के सभी महानुभावों तक पहुंचे तब तक forward करे ताकि देश आरक्षण की दीमक से बरबाद होने से बच जाये ।

सोर्स - WhatsApp.
 

Saturday, June 25, 2016

सामर्थ्य - समय व धीरज की...


            एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था, "जो चाहोगे सो पाओगे"  "जो चाहोगे सो पाओगे।"

            बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था सब उसे पागल समझते थे ।

             एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी-  "जो चाहोगे सो पाओगे"   "जो चाहोगे सो पाओगे।"

            वह आवाज सुनते ही उसके पास चला गया ।

            उसने साधु से पूछा - महाराज आप बोल रहे थे कि
"जो चाहोगे सो पाओगे" ।

            तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैं जो चाहता हूँ ?

            साधु उसकी बात को सुनकर बोला –  हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो  उसे मैं तुम्हें जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी । लेकिन उसके पहले ये बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या ?

            युवक बोला-
"मेरी एक ही ख्वाहिश है, मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ ।"

            साधू बोला-
"कोई बात नहीँ, मैं तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे ।"

            ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा- 
"पुत्र, मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना,  तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो ।"

            युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसकी दूसरी हथेली पकड़ते हुए बोला -
"पुत्र, इसे भी पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है, लोग इसे “धैर्य” कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिले, तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है ।"

            युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करते हुए निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्बाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा । 

             ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम सीखते हुए करना शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बन जाता है ।

            मित्रो- ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं । अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए हमेशा धैर्य से काम लें । हमारे बुजुर्गों ने भी अपने शब्दों में धीरज का महत्व हमें इस प्रकार समझाने का प्रयास किया है-


धीरे-धीरे  रे मना,  धीरे  सब  कुछ  होय,
माली सींचे सौ घडा, ऋुत आये फल होय ।

Monday, June 20, 2016

सकारात्मक या नकारात्मक...?



            वर्षों पूर्व मेरे ससुराल के 40-45 वर्ष के आसपास की उम्र के दो रिश्तेदार ।  दोनों ही सीने में दर्द के रोगी, और दोनों ही मुझे ससुराल पक्ष के होने के कारण कंवर साब कहकर सम्बोधित करते थे । एक जब भी मिलते कहते - कंवर साब मेरा क्या भरोसा ? दूसरे जब भी मिलते कहते - अरे कंवर साब जब भी सीने में दर्द उठता है मैं बाम बगैरह लगा लेता हूँ, कुछ देर आराम कर लेता हूँ और फिर अपने काम पर लग जाता हूँ और बिल्कुल सत्य घटना यह घटी कि जो कहते थे मेरा क्या भरोसा ?  वो उतनी ही जल्दी इस दुनिया को अलविदा कर गये, जबकि बाम वगैरह लगाकर आराम करके अपने काम पर लग जाने वाले आज भी उसी स्थिति में किंतु मानसिक रुप से मजे में अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं ।

            वाकया याद यूं भी आया कि मेरे एक अभिन्न मित्र अच्छा कमाने-खाने के बावजूद हर जगह, हर परिस्थिति में नकारात्मकता को ही देखते हैं । नजदीकी सम्बन्धों में भी उन विषयों तक में जिनका न तो उनसे कोई लेना-देना हो, और न ही उनसे उस बारे में उनकी कोई राय मांगी गई हो, किंतु फिर भी बेवजह बीच में कूदना और अपनी नकारात्मक शैली में उस व्यक्ति की ही छिछालेदारी करने लगना जो उन्हें अपना सर्वाधिक घनिष्ठ मानता रहा हो । नतीजा - वर्ष भर में उनके दो मंहगे और बडे आकार के ऑपरेशन हो गये । तमाम मितव्ययिता के बावजूद रास्ते चलते दो-तीन लाख रुपये के खर्च में भी आ गये किंतु आदत है कि छूटती नहीं और कहीं भी अपनी नकारात्मक शैली में पूरी वजनदारी के साथ घुसपैठ कर ही बैठते हैं । अपनी इसी कमी के कारण ये इनकी नजदीकी रिश्तेदारी में भी अच्छे-खासे उपेक्षित ही रहते हैं किंतु आदत है कि "दिल है के मानता नहीं" की तर्ज पर कभी छूटती नहीं ।

            निःसंदेह जिंदगी में हमारा नजरिया ही हमारा मार्ग और हमारा भाग्य निर्धारित करता है । हो सकता है कि नकारात्मक सोच को प्रधानता देते रहने वाले लोगों के जीवन में कुछ वाकये ऐसे कभी गुजरे हों जिन्होंने हमेशा के लिये उनकी सोच का मार्ग यह बना दिया हो, यह भी हो सकता है कि उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में ही सोचने का यही तरीका मिला हो किंतु दोनों ही स्थितियों में इसके नुकसान तो इन्हें ही उठाने पडते हैं जिनकी  सोच-शैली नकारात्मक हो जाती है । प्रश्न तब यह उठता है कि ऐसे में क्या किया जावे कि हमारे अपने जीवन से इस मनहूसियत को हम दूर कर पाएं क्योंकि मुद्दे यदि सिर्फ दो हैं तो इसका मतलब देश व दुनिया की कमोबेश लगभग आधी आबादी इस समस्या से पूर्णतः या अंशतः ग्रसित है...

            कुछ उपाय जो इस स्थिति से बचाव के सामने आते हैं वे यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास है...

अन्धेरों से घिरे हों तो घबराएं नहीं, 
क्योंकि सितारों को चमकने के लिए घनी रात ही चाहिए होती है, दिन की रोशनी नहीं ।
            
            कैसे करें नकारात्मक सोच को सकारात्मक में परिवर्तित ?

            
“क्योंकि हम जो सोचते हैं, वो ही बन भी जाते हैं”

            Law Of Attraction (LOA) अर्थात् आकर्षित करने का नियम कहता है कि हम जो भी सोचते हैं उसे अपने जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी । उदाहरण के लिए- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं को कुछ ऐसे सेट करता है कि उसे अपने जिंदगी में परेशानी, बीमारी और तंगी का सामना करना ही पड़ता है । वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास बहुत पैसे हैं तो LOA कि वजह से असल जिंदगी में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत और समृद्धि देखने को मिलने लगती है ।

            “हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं, किंतु विचार हैं, जो दूर तक यात्रा करते हैं” जो लोग LOA मानते हैं वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना ज़रूरी है…  

            वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक सोच हमारे जीवन को सकारात्मकता से दूर ले जाती है और हर एक सकारात्मक सोच जीवन में खुशियां लाती है । किसी ने कहा भी है-  ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी पावरफुल है - तो वो कभी नकारात्मक नहीं सोचता !”

            परन्तु क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ? यहीं पर काम आते हैं  हमारे  लेकिन, किन्तु, परन्तु...

            प्रायः ये शब्द ज्यादातर नकारात्मक सोच में प्रयुक्त  होते हैं  । आप लोगों को कहते सुन सकते हैं - मैं सफल हो जाता लेकिन..., सब सही चल रहा था किन्तु..., पर ऐसे शब्दों के प्रयोग में नकारात्मकता के अंत में कुछ वृद्धि करके उन्हें सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर सकते हैं । इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं- 

             जैसे ही आपके मन में विचार आये, “दुनिया बहुत बुरी है”  तो आप इतना कह कर या सोच कर रुके नहीं, तुरंत महसूस करें कि आपने एक नकारात्मक शब्द बोला है इसलिए तुरंत सचेत हो जाएं और वाक्य को कुछ ऐसे पूरा करें-  ”दुनिया बहुत बुरी है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, बहुत से अच्छे लोग समाज में अच्छाई का बीज बो रहे हैं और सब ठीक हो रहा है“

            कुछ और उदाहरण देखते हैं-

            मैं पढ़ने में कमजोर हूँ...लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो जाऊँगा ।

            मेरे अफसर बहुत जालिम हैं... पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उन्हें ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता है उनसे ।

            मेरे पास पैसे नहीं हैं...लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ ।

            मेरे साथ हमेशा बुरा होता आया है...लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और आगे भी होगा ।

            मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही...परंतु अब मौसम शादीयों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा ।

            मित्रों... यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस करना है कि कब आपके मन में एक नकारात्मक सोच आई है और तुरंत सावधान हो कर व इसे- “लेकिन” लगा कर सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर देना है, और ये आपको सिर्फ तब नहीं करना जब आप किसी के सामने बात कर रहे हों, बल्कि सबसे अधिक तो आपको ये अकेले रहते हुए अपने साथ करना है, आपको अपनी सोच पर ध्यान देना है, सावधान रहना है कि आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक ?  और जैसे ही नकारात्मक सोच आये आपको तुरंत उसे सकारात्मक में परिवर्तित कर देना है । तब आप इस बात की चिंता ना करें की आपने ‘लेकिन‘ के बाद जो लाइन जोड़ी है वो सही है या गलत, 

            आपको तो बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है, और आपका अवचेतन मस्तिष्क उसे ही सही मानेगा और ब्रह्माण्ड आपके जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !

            वैसे देखने में ये आसान लग सकता है ! हो सकता है ये आपको बड़ा सामान्य भी लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति सतर्क बने रहना चैलेंजिंग ही होता है । इसलिए अगर आप इस तरीके को आजमाते वक़्त कई बार नकारात्मक सोच को miss भी कर जाते हैं तो चिंता न करें...

            जैसे तमाम चीजों को अभ्यास से सही किया जा सकता है वैसे ही अपने विचारों को भी अभ्यास से सकारात्मकता की ओर परिवर्तित किया जा सकता है ।
 
यहाँ इस चित्र को ध्यान से देखें...!  


Friday, June 17, 2016

मनोस्थिति : सुख या दु:ख...




एक महान लेखक अपने लेखन कक्ष में बैठा लिख रहा था –

     पिछले वर्ष मेरा आपरेशन हुआ और मेरा गाल ब्लाडर निकाल दिया गया जिसके कारण एक बडे अनावश्यक खर्च के साथ मुझे लम्बे समय तक बिस्तर पर पडे रहना पडा ।

     इसी वर्ष मैं 60 वर्ष का हुआ और मेरी पसंदीदा प्रकाशन संस्थान की वह नौकरी भी चली गई जहाँ मैं पिछले 30 वर्षों से कार्यरत था ।

     अपने पिता की मृत्यु का दु:ख भी मुझे इसी वर्ष में झेलना पडा ।

     और इसी वर्ष में मेरा बेटा कार एक्सीडेंट के कारण बहुत दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने से अपनी मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गया । कार की टूट-फूट का नुकसान अलग हुआ ।

     अंत में लेखक ने लिखा – यह बहुत ही बुरा साल था ।

     जब उसकी पत्नी लेखन कक्ष में आई तो उसने देखा कि कलम हाथ में लिये बैठा उसका पति अपने विचारों में खोया बहुत दु:खी लग रहा था । अपने पति की कुर्सी के पीछे खडे रहकर उसने देखा और पढा कि वो क्या लिख रहा था ।

     वह चुपचाप उसके कक्ष से बाहर निकल गई और कुछ देर बाद एक लिखे हुए दूसरे कागज के साथ वापस लौटकर आई और वह कागज भी पति के लिखे कागज के बगल में रखकर बाहर निकल गई ।

     लेखक ने पत्नी के द्वारा रखे कागज पर कुछ लिखा देखकर उसे पढा तो उसमें लिखा था-

     पिछले वर्ष आखिर मुझे उस गाल ब्लाडर से छुटकारा मिल गया जिसके कारण मैं कई सालों दर्द से परेशान रहा ।

     इसी वर्ष अपनी 60 साल की उम्र पूरी कर स्वस्थ-दुरुस्त अवस्था में अपनी प्रकाशन कम्पनी की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ । अब मैं पूरा ध्यान लगाकर शांति के साथ अपने समय का उपयोग और भी बेहतर लेखन-पठन के लिये कर सकूंगा ।

     इसी साल में मेरे 95 वर्षीय पिता बगैर किसी पर आश्रित हुए और बिना किसी गंभीर बीमारी का दु:ख भोगे अपनी उम्र पूरी कर परमात्मा के पास चले गये ।

     और इसी वर्ष भगवान ने एक बडे एक्सीडेंट के बावजूद मेरे बेटे की रक्षा भी की । भले ही कार में बडा नुकसान हुआ किन्तु मेरे बेटे का न सिर्फ जीवन बल्कि उसके हाथ-पैर भी सब सही-सलामत रहे ।

     अंत में उसकी पत्नी ने लिखा था – इस साल ईश्वर की हम पर बहुत कृपा रही, साल अच्छा बीता ।

     तो देखा आपने – सोचने का नजरिया बदलने पर कितना कुछ बदल जाता है । स्थितियाँ तो वही रहती है किंतु आत्म संतोष कितना मिलता है ।