Thursday, June 30, 2016

आरक्षण का दंश...

           
            एक सज्जन से एक सवाल पूछा गया कि भारत में जनरल कैटेगरी वाला होने पर आपका क्या अनुभव है तो उन्होंने जो जबाब दिया, उसे पढ़िए........(हिंदी में अनुवाद)

           प्रवेश परीक्षा:
         मेरा स्कोर :192, उसका स्कोर :92, जी हाँ हम एक ही कॉलेज में पढ़े.....

           College Fees,
         मेरी हर सेमिस्टर की फी 30200, (मेरे परिवार की आय 5 lacs से कम है..) उसकी हर सेमिस्टर की फी 6600. (उसके माता और पिता दोनों अच्छा कमा रहे हैं......) जी हाँ हम दोनों एक ही होस्टल में रहते थे...

          Mess Fees,
         मैं 15000/- हर सेमिस्टर के देता था.... वो भी 15000 हर सेमिस्टर के देता था, लेकिन सेमिस्टर के अंत में वो उसे रिफंड होते थे..... जी हाँ हम एक ही मेस में खाते थे....

          Pocket Money,
         मेरा खर्चा 5000 था जो कि मैं ट्यूशन और थोड़ा बहुत अपने पिता से लेता था... वो 10000 खर्चा करता था जो कि उसे स्कॉलरशिप के मिलते थे... जी हाँ हम एक साथ पार्टी करते थे....

          CAT 2015,
        मेरा स्कोर : 99 percentile. (किसी IIM से एक मिसकॉल का इंतज़ार रहा.) उसका स्कोर : 63 percentile. ( IIM Ahemedabad के लिए सलेक्ट हुआ) जी हाँ ऐप्टीट्यूड और रीजनिंग उसे मैंने पढ़ाया था....

          OIL Campus recruitement,
          मैं : Rejected. (My OGPA 8.1) वो : selected. (His OGPA 6.9) जी हाँ हमने एक ही कोर्स पढ़ा था...

          GATE Score,
       मेरा स्कोर : 39.66 (डिसक्वालीफाईड सो INR 1,68,000 की स्कॉलरशिप भी हाथ से गई) उसका स्कोर : 26 (क्वालीफाईड और INR 1,68,000 के साथ-साथ अतिरिक्त स्कॉलरशिप भी) जी हाँ हमने एक जैसे नोट्स शेयर किये थे..

            कौन हूँ मैं ? मैं भारत में एक जनरल कैटेगरी का छात्र हूँ...

            दिमाग में बस कुछ सवाल हैं.....

            क्या उसके पास चलने के लिए दो पैर नहीं हैं ? क्या उसके पास लिखने या काम करने के लिए दो हाथ नहीं हैं ? क्या उसके पास बोलने के लिए मुंह नहीं है ? क्या उसके पास सोचने के लिए दिमाग नहीं है ? अगर हैं तो फिर हम दोनों को एक जैसा ट्रीटमेंट क्यों नहीं मिलता ? 

          ये बात राजनितिक पार्टीयो के बजाय देश के सम्माननीय न्यायालय के सभी महानुभावों तक पहुंचे तब तक forward करे ताकि देश आरक्षण की दीमक से बरबाद होने से बच जाये ।

सोर्स - WhatsApp.
 

Saturday, June 25, 2016

सामर्थ्य - समय व धीरज की...


            एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था, "जो चाहोगे सो पाओगे"  "जो चाहोगे सो पाओगे।"

            बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था सब उसे पागल समझते थे ।

             एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी-  "जो चाहोगे सो पाओगे"   "जो चाहोगे सो पाओगे।"

            वह आवाज सुनते ही उसके पास चला गया ।

            उसने साधु से पूछा - महाराज आप बोल रहे थे कि
"जो चाहोगे सो पाओगे" ।

            तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैं जो चाहता हूँ ?

            साधु उसकी बात को सुनकर बोला –  हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो  उसे मैं तुम्हें जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी । लेकिन उसके पहले ये बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या ?

            युवक बोला-
"मेरी एक ही ख्वाहिश है, मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ ।"

            साधू बोला-
"कोई बात नहीँ, मैं तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे ।"

            ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा- 
"पुत्र, मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना,  तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो ।"

            युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसकी दूसरी हथेली पकड़ते हुए बोला -
"पुत्र, इसे भी पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है, लोग इसे “धैर्य” कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिले, तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है ।"

            युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करते हुए निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्बाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा । 

             ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम सीखते हुए करना शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बन जाता है ।

            मित्रो- ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं । अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए हमेशा धैर्य से काम लें । हमारे बुजुर्गों ने भी अपने शब्दों में धीरज का महत्व हमें इस प्रकार समझाने का प्रयास किया है-


धीरे-धीरे  रे मना,  धीरे  सब  कुछ  होय,
माली सींचे सौ घडा, ऋुत आये फल होय ।

Monday, June 20, 2016

सकारात्मक या नकारात्मक...?



            वर्षों पूर्व मेरे ससुराल के 40-45 वर्ष के आसपास की उम्र के दो रिश्तेदार ।  दोनों ही सीने में दर्द के रोगी, और दोनों ही मुझे ससुराल पक्ष के होने के कारण कंवर साब कहकर सम्बोधित करते थे । एक जब भी मिलते कहते - कंवर साब मेरा क्या भरोसा ? दूसरे जब भी मिलते कहते - अरे कंवर साब जब भी सीने में दर्द उठता है मैं बाम बगैरह लगा लेता हूँ, कुछ देर आराम कर लेता हूँ और फिर अपने काम पर लग जाता हूँ और बिल्कुल सत्य घटना यह घटी कि जो कहते थे मेरा क्या भरोसा ?  वो उतनी ही जल्दी इस दुनिया को अलविदा कर गये, जबकि बाम वगैरह लगाकर आराम करके अपने काम पर लग जाने वाले आज भी उसी स्थिति में किंतु मानसिक रुप से मजे में अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं ।

            वाकया याद यूं भी आया कि मेरे एक अभिन्न मित्र अच्छा कमाने-खाने के बावजूद हर जगह, हर परिस्थिति में नकारात्मकता को ही देखते हैं । नजदीकी सम्बन्धों में भी उन विषयों तक में जिनका न तो उनसे कोई लेना-देना हो, और न ही उनसे उस बारे में उनकी कोई राय मांगी गई हो, किंतु फिर भी बेवजह बीच में कूदना और अपनी नकारात्मक शैली में उस व्यक्ति की ही छिछालेदारी करने लगना जो उन्हें अपना सर्वाधिक घनिष्ठ मानता रहा हो । नतीजा - वर्ष भर में उनके दो मंहगे और बडे आकार के ऑपरेशन हो गये । तमाम मितव्ययिता के बावजूद रास्ते चलते दो-तीन लाख रुपये के खर्च में भी आ गये किंतु आदत है कि छूटती नहीं और कहीं भी अपनी नकारात्मक शैली में पूरी वजनदारी के साथ घुसपैठ कर ही बैठते हैं । अपनी इसी कमी के कारण ये इनकी नजदीकी रिश्तेदारी में भी अच्छे-खासे उपेक्षित ही रहते हैं किंतु आदत है कि "दिल है के मानता नहीं" की तर्ज पर कभी छूटती नहीं ।

            निःसंदेह जिंदगी में हमारा नजरिया ही हमारा मार्ग और हमारा भाग्य निर्धारित करता है । हो सकता है कि नकारात्मक सोच को प्रधानता देते रहने वाले लोगों के जीवन में कुछ वाकये ऐसे कभी गुजरे हों जिन्होंने हमेशा के लिये उनकी सोच का मार्ग यह बना दिया हो, यह भी हो सकता है कि उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में ही सोचने का यही तरीका मिला हो किंतु दोनों ही स्थितियों में इसके नुकसान तो इन्हें ही उठाने पडते हैं जिनकी  सोच-शैली नकारात्मक हो जाती है । प्रश्न तब यह उठता है कि ऐसे में क्या किया जावे कि हमारे अपने जीवन से इस मनहूसियत को हम दूर कर पाएं क्योंकि मुद्दे यदि सिर्फ दो हैं तो इसका मतलब देश व दुनिया की कमोबेश लगभग आधी आबादी इस समस्या से पूर्णतः या अंशतः ग्रसित है...

            कुछ उपाय जो इस स्थिति से बचाव के सामने आते हैं वे यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास है...

अन्धेरों से घिरे हों तो घबराएं नहीं, 
क्योंकि सितारों को चमकने के लिए घनी रात ही चाहिए होती है, दिन की रोशनी नहीं ।
            
            कैसे करें नकारात्मक सोच को सकारात्मक में परिवर्तित ?

            
“क्योंकि हम जो सोचते हैं, वो ही बन भी जाते हैं”

            Law Of Attraction (LOA) अर्थात् आकर्षित करने का नियम कहता है कि हम जो भी सोचते हैं उसे अपने जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी । उदाहरण के लिए- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं को कुछ ऐसे सेट करता है कि उसे अपने जिंदगी में परेशानी, बीमारी और तंगी का सामना करना ही पड़ता है । वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास बहुत पैसे हैं तो LOA कि वजह से असल जिंदगी में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत और समृद्धि देखने को मिलने लगती है ।

            “हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं, किंतु विचार हैं, जो दूर तक यात्रा करते हैं” जो लोग LOA मानते हैं वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना ज़रूरी है…  

            वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक सोच हमारे जीवन को सकारात्मकता से दूर ले जाती है और हर एक सकारात्मक सोच जीवन में खुशियां लाती है । किसी ने कहा भी है-  ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी पावरफुल है - तो वो कभी नकारात्मक नहीं सोचता !”

            परन्तु क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ? यहीं पर काम आते हैं  हमारे  लेकिन, किन्तु, परन्तु...

            प्रायः ये शब्द ज्यादातर नकारात्मक सोच में प्रयुक्त  होते हैं  । आप लोगों को कहते सुन सकते हैं - मैं सफल हो जाता लेकिन..., सब सही चल रहा था किन्तु..., पर ऐसे शब्दों के प्रयोग में नकारात्मकता के अंत में कुछ वृद्धि करके उन्हें सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर सकते हैं । इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं- 

             जैसे ही आपके मन में विचार आये, “दुनिया बहुत बुरी है”  तो आप इतना कह कर या सोच कर रुके नहीं, तुरंत महसूस करें कि आपने एक नकारात्मक शब्द बोला है इसलिए तुरंत सचेत हो जाएं और वाक्य को कुछ ऐसे पूरा करें-  ”दुनिया बहुत बुरी है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, बहुत से अच्छे लोग समाज में अच्छाई का बीज बो रहे हैं और सब ठीक हो रहा है“

            कुछ और उदाहरण देखते हैं-

            मैं पढ़ने में कमजोर हूँ...लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो जाऊँगा ।

            मेरे अफसर बहुत जालिम हैं... पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उन्हें ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता है उनसे ।

            मेरे पास पैसे नहीं हैं...लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ ।

            मेरे साथ हमेशा बुरा होता आया है...लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और आगे भी होगा ।

            मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही...परंतु अब मौसम शादीयों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा ।

            मित्रों... यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस करना है कि कब आपके मन में एक नकारात्मक सोच आई है और तुरंत सावधान हो कर व इसे- “लेकिन” लगा कर सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर देना है, और ये आपको सिर्फ तब नहीं करना जब आप किसी के सामने बात कर रहे हों, बल्कि सबसे अधिक तो आपको ये अकेले रहते हुए अपने साथ करना है, आपको अपनी सोच पर ध्यान देना है, सावधान रहना है कि आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक ?  और जैसे ही नकारात्मक सोच आये आपको तुरंत उसे सकारात्मक में परिवर्तित कर देना है । तब आप इस बात की चिंता ना करें की आपने ‘लेकिन‘ के बाद जो लाइन जोड़ी है वो सही है या गलत, 

            आपको तो बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है, और आपका अवचेतन मस्तिष्क उसे ही सही मानेगा और ब्रह्माण्ड आपके जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !

            वैसे देखने में ये आसान लग सकता है ! हो सकता है ये आपको बड़ा सामान्य भी लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति सतर्क बने रहना चैलेंजिंग ही होता है । इसलिए अगर आप इस तरीके को आजमाते वक़्त कई बार नकारात्मक सोच को miss भी कर जाते हैं तो चिंता न करें...

            जैसे तमाम चीजों को अभ्यास से सही किया जा सकता है वैसे ही अपने विचारों को भी अभ्यास से सकारात्मकता की ओर परिवर्तित किया जा सकता है ।
 
यहाँ इस चित्र को ध्यान से देखें...!  


Friday, June 17, 2016

मनोस्थिति : सुख या दु:ख...




एक महान लेखक अपने लेखन कक्ष में बैठा लिख रहा था –

     पिछले वर्ष मेरा आपरेशन हुआ और मेरा गाल ब्लाडर निकाल दिया गया जिसके कारण एक बडे अनावश्यक खर्च के साथ मुझे लम्बे समय तक बिस्तर पर पडे रहना पडा ।

     इसी वर्ष मैं 60 वर्ष का हुआ और मेरी पसंदीदा प्रकाशन संस्थान की वह नौकरी भी चली गई जहाँ मैं पिछले 30 वर्षों से कार्यरत था ।

     अपने पिता की मृत्यु का दु:ख भी मुझे इसी वर्ष में झेलना पडा ।

     और इसी वर्ष में मेरा बेटा कार एक्सीडेंट के कारण बहुत दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने से अपनी मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गया । कार की टूट-फूट का नुकसान अलग हुआ ।

     अंत में लेखक ने लिखा – यह बहुत ही बुरा साल था ।

     जब उसकी पत्नी लेखन कक्ष में आई तो उसने देखा कि कलम हाथ में लिये बैठा उसका पति अपने विचारों में खोया बहुत दु:खी लग रहा था । अपने पति की कुर्सी के पीछे खडे रहकर उसने देखा और पढा कि वो क्या लिख रहा था ।

     वह चुपचाप उसके कक्ष से बाहर निकल गई और कुछ देर बाद एक लिखे हुए दूसरे कागज के साथ वापस लौटकर आई और वह कागज भी पति के लिखे कागज के बगल में रखकर बाहर निकल गई ।

     लेखक ने पत्नी के द्वारा रखे कागज पर कुछ लिखा देखकर उसे पढा तो उसमें लिखा था-

     पिछले वर्ष आखिर मुझे उस गाल ब्लाडर से छुटकारा मिल गया जिसके कारण मैं कई सालों दर्द से परेशान रहा ।

     इसी वर्ष अपनी 60 साल की उम्र पूरी कर स्वस्थ-दुरुस्त अवस्था में अपनी प्रकाशन कम्पनी की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ । अब मैं पूरा ध्यान लगाकर शांति के साथ अपने समय का उपयोग और भी बेहतर लेखन-पठन के लिये कर सकूंगा ।

     इसी साल में मेरे 95 वर्षीय पिता बगैर किसी पर आश्रित हुए और बिना किसी गंभीर बीमारी का दु:ख भोगे अपनी उम्र पूरी कर परमात्मा के पास चले गये ।

     और इसी वर्ष भगवान ने एक बडे एक्सीडेंट के बावजूद मेरे बेटे की रक्षा भी की । भले ही कार में बडा नुकसान हुआ किन्तु मेरे बेटे का न सिर्फ जीवन बल्कि उसके हाथ-पैर भी सब सही-सलामत रहे ।

     अंत में उसकी पत्नी ने लिखा था – इस साल ईश्वर की हम पर बहुत कृपा रही, साल अच्छा बीता ।

     तो देखा आपने – सोचने का नजरिया बदलने पर कितना कुछ बदल जाता है । स्थितियाँ तो वही रहती है किंतु आत्म संतोष कितना मिलता है ।


प्रेरक सम्बन्ध...

    
            वैवाहिक वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर पति-पत्नी साथ में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे । संसार की दृष्टि में वो एक आदर्श युगल थे, दोनों में प्रेम भी बहुत था, लेकिन कुछ समय से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है । शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ रही थीं । 

            बातें करते-करते अचानक पत्नी ने एक प्रस्ताव रखा कि मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना होता है लेकिन हमारे पास समय ही नहीं होता एक-दूसरे के लिए । इसलिए मैं दो डायरियाँ ले आती हूँ और हमारी जो भी शिकायत हो हम पूरा साल अपनी-अपनी डायरी में लिखेंगे व*अगले साल इसी दिन हम एक-दूसरे की डायरी पढ़ेंगे ताकि हमें पता चल सके कि हममें कौन-कौनसी कमियां हैं जिससे कि उसका पुनरावर्तन ना हो सके ।

             पति भी सहमत हो गया कि विचार तो अच्छा है । डायरियाँ आ गईं और देखते ही देखते साल बीत गया । अगले साल फिर विवाह की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर दोनों साथ बैठे । एक-दूसरे की डायरियाँ लीं । पहले आप, पहले आप की मनुहार हुई । आखिर में महिला प्रथम की परिपाटी के आधार पर पत्नी की लिखी डायरी पति ने पढ़नी शुरू की ।

             पहला पन्ना, दूसरा पन्ना, तीसरा पन्ना,

           आज शादी की वर्षगांठ पर मुझे ढंग का तोहफा भी नहीं दिया । आज होटल में खाना खिलाने का वादा करके भी नहीं ले गए । आज मेरे फेवरेट हीरो की पिक्चर दिखाने के लिए कहा तो जवाब मिला बहुत थक गया हूँ । आज मेरे मायके वाले आए तो उनसे ढंग से बात नहीं की । आज बरसों बाद मेरे लिए साड़ी लाए भी तो पुराने डिजाइन की । ऐसी अनेक रोज़ की छोटी-छोटी फरियादें लिखी हुई थीं ।

             पढ़कर पति की आँखों में आँसू आ गए । पूरा पढ़कर पति ने कहा कि मुझे पता ही नहीं था मेरी गल्तियों का, किंतु फिर भी मैं ध्यान रखूँगा कि आगे से इनकी पुनरावृत्ति ना हो ।

            अब पत्नी ने पति की डायरी खोली, पहला पन्ना……… खाली, दूसरा पन्ना……… खाली,  तीसरा पन्ना ……… खाली,  अब दो-चार पन्ने साथ में पलटे तो वो भी खाली, फिर 50-100 पन्ने साथ में पलटे तो वो भी खाली ।
    
            पत्नी ने कहा कि मुझे पता था कि तुम मेरी इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकोगे । मैंने पूरे साल इतनी मेहनत से तुम्हारी सारी कमियां लिखीं ताकि तुम उन्हें सुधार सको और तुमसे इतना भी नहीं हुआ ।

           पति मुस्कुराया और कहा मैंने सब कुछ अंतिम पृष्ठ पर एक साथ लिख दिया है । 

            पत्नी ने उत्सुकता से अंतिम पृष्ठ खोला । उसमें लिखा था - मैं तुम्हारे मुँह पर तुम्हारी जितनी भी शिकायत कर लूँ लेकिन तुमने जो मेरे और मेरे परिवार के लिए त्याग किए हैं और इतने वर्षों में जो असीमित प्रेम दिया है, उसके सामने मैं इस डायरी में लिख सकूँ ऐसी कोई भी कमी मुझे तुममें दिखाई ही नहीं दी । ऐसा नहीं है कि तुममें कोई कमी नहीं है - लेकिन तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा समर्पण, तुम्हारा त्याग उन सब कमियों से ऊपर है । मेरी अनगिनत अक्षम्य भूलों के बाद भी तुमने जीवन के प्रत्येक चरण में छाया बनकर मेरा साथ निभाया है । अब अपनी ही छाया में कोई दोष कैसे दिखाई दे मुझे ।

              अब रोने की बारी पत्नी की थी । उसने पति के हाथ से अपनी डायरी लेकर दोनों डायरियाँ अग्नि में स्वाहा कर दीं और साथ में सारे गिले-शिकवे भी । फिर से उनका जीवन एक नवपरिणीत युगल की भाँति प्रेम से महक उठा । जब जवानी का सूर्य अस्ताचल की ओर प्रयाण शुरू कर दे तब हम एक-दूसरे की कमियां या गल्तियां ढूँढने की बजाए अगर ये याद करें हमारे साथी ने हमारे लिए कितना त्याग किया है, उसने हमें कितना प्रेम दिया है, कैसे पग-पग पर हमारा साथ दिया है तो निश्चित ही जीवन में प्रेम फिर से पल्लवित हो जाएगा । 
For all of us.





Wednesday, June 15, 2016

कर्मसूत्र...


            कुछ समय पूर्व एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही । पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया । 

            परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया । सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया । उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था ।

            सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है ।

            सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !' इसलिये उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई ।

            उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था.. लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी । व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना । सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया । 

            कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय सेठ अपने नगर को पहुँचा । उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूँ तो क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुँच कर उसे आश्चर्य उपहार दूँ ।

            घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया । तो वहाँ का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई । पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक अन्जान युवक सोया हुआ था । अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है । दोनों को जिन्दा नही छोड़ूगाँ । क्रोध में तलवार निकाल ली ।

            वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आया- कि कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना । सोचने के लिए रूका । तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई । बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई । जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह भावविव्हल हो ख़ुशी में रो पडी और बोली- आपके बिना जीवन कितना सूना था, इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूँ ।

            सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर कुपित था । पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग । तेरे पिता आए हैं । युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई और उसके लम्बे बाल बिखर गए ।  सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है । पिता के बिना इसके मान को कोई आंच न आए, इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान पालन पोषण और संस्कार दिए हैं ।

            यह सुनकर सेठ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली । पत्नी और बेटी को गले लगाकर वह सोचने लगा कि यदि आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता । मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता ।

            ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे बहुत महंगा लग रहा था, लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 स्वर्ण मुद्राएं भी बहुत कम हैं । 'ज्ञान तो वास्तव में  अनमोल है ' ।

            इस कहानी का सार यह है कि जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं. वे हैं - शातिं के । किसी भी व्यक्ति को क्रोध अथवा जल्दबाजी के आवेश में कुछ भी कर्म करने के पूर्व इस सूत्र को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये ।   
               

Sunday, June 12, 2016

हमारा गौरवशाली इन्दौर...


             भारत के नक्शे पर कई शहर अपनी विशेष पहचान के कारण ही जाने जाते हैं, उन्हीं में यदि रानी अहिल्याबाई व सर सेठ हुकमचंद जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों से जुडे इन्दौर शहर की बात की जावे तो चाहे यह शहर बम्बई, दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास जैसे देश के महानगरों सा आकार नहीं रखता हो किंतु इसकी ऐतिहासिकता के साथ ही ऐसी अनेक विशेषतायें इस शहर के साथ शुरु से जुडी रही हैं जो इसे देश के नक्शे में एक विशिष्ट स्थान दिलवाते हुए इसकी पहचान को हमेशा से एक विशेष दर्जा सदैव दिलवाती रही हैं । 

            देश के सात राज्यों से सीधे जुडे मध्यप्रदेश के भी लगभग मध्य में राज्य की औद्योगिक व व्यापारिक राजधानी का दर्जा रखने के कारण अन्य प्रांतों से आकर बसने वाली आबादी का सर्वोच्च भार वहन करने वाले इस शहर की खासियतों का यदि जिक्र करना प्रारम्भ किया जावे तो वास्तव में लेख की लम्बाई तो बढती ही चली जाएगी किंतु यहाँ की विशेष पहचान के क्रम समाप्त होते नहीं दिखेंगे । फिर भी इस क्रम में यह जानने की कोशिश करते हैं कि वे कौन-कौनसी प्रमुख विशेषताएँ हैं जो इस शहर को इसकी खासियतों के आधार पर इसे अन्यों से कुछ अलग दिखला सकने का कारण बनती हैं-

            महान क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गावस्कर ने अपने वनडे करियर की एकमात्र सेंचुरी इंदौर के नेहरू स्टेडियम में लगाई ।

            इन्दौर स्थित सैन्य छावनी MHOW (Military Headquarters Of War) देश की मुख्य सैन्य छावनियों में शामिल है ।

            जानकारी के अनुसार इन्दौर का नामकरण इन्द्रेश्वर मंदिर के नाम पर हुआ था, शुरूआत में यह "इन्दूर" था,जो आगे चलकर "इन्दौर" कहलाया ।

            इन्दौर देश का एकमात्र शहर है जहाँ पर IIM एवं IIT दोनों है ।
 
           इन्दौर में एशिया की सबसे बड़ी रिहायशी कॉलोनी सुदामा नगर है ।

            देश के पहले निजी रेडियो चैनल "रेडियो मिर्ची" ने अपने प्रसारण की शुरुआत इन्दौर से की थी ।

            स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, फिल्म स्टार सलमान खान, क्रिकेट खिलाड़ी राहुल द्रविड़ और परम पूज्यनीय योग गुरु श्री मनीष शर्मा की जन्मभूमि भी इन्दौर है ।

            पूर्व में इन्दौर को  "म.प्र.का डेट्रॉयट"  नाम से नवाजा जा चुका है ।

         इंदौर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां 100 कि.मी. की रेंज में दो ज्योतिर्लिंग हैं-  1. ओंकारेश्वर  और  2. महाकालेश्वर ।

            इन्दौर स्थित आर आर कैट देश की मुख्य प्रयोगशालाओं में एक है । यहां एक्सलरेटर, क्रायोजेनिक्स सहित कई महत्वपूर्ण शोध हो रहे हैं ।

            टेस्ट क्रिकेट में एक टेस्ट में   सर्वाधिक विकेट लेने का  कीर्तिमान इंदौर के नरेन्द्र हिरवानी और बाब मैसी (आस्ट्रेलिया) के नाम पर संयुक्त रूप से दर्ज है । 
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            किसी महिला प्रत्याशी द्वारा एक ही लोकसभा सीट से एक ही पार्टी के टिकट पर सर्वाधिक बार चुनाव जीतने का कीर्तिमान इन्दौर की सांसद और वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के नाम पर दर्ज ।

            विकास के शुरुआती वर्षों में इन्दौर "कपड़ा मिलों का शहर" के नाम से प्रसिद्ध था लेकिन अब ये सभी मिलें बंद हो चुकी है ।

            इन्दौर स्वाद के शौकीनों का शहर है । इसे "स्वाद की राजधानी" के रूप मे जाना जाता है ।

            यहाँ पर एशिया के सबसे बड़े गणपति विराजमान हैं (बड़ा गणपति)

            यहाँ पर संपूर्ण कांच से निर्मित मंदिर है । जहां पर छत, दिवार से लेकर फर्श भी कांच की है और ये सारे कांच  विदेशों से मंगाए गए थे ।

            यहीं पर ही वीरेंद्र सहवाग ने 200 रन बनाये थे ।

            यहीं के एक विधायक के नाम सबसे ज्यादा मतों से जितने का रिकार्ड है ।

            यहीं की एक बेटी पलक मुछाल ने गाने गाकर सबसे ज्यादा हार्ट सर्जरी करवाई और यह क्रम अभी तक भी सतत जारी है ।

            यहीं का एक ट्रैफिक पुलिस आज दुनिया का सबसे पसंदीदा ट्रैफिक पुलिस है । जिसे काम करते सभी देखना चाहते है । रणजीत सिंह ।

            यहाँ पर स्थित दवा बाजार एशिया का सबसे बड़ा दवा बाजार है ।

            यहीं पर एक ऐसा पर्वत है जहां पर पितरों की याद में पोधे लगाये जाते है । पितृ पर्वत ।

            यही वो शहर है जहां मूक बधिरों की सेवा के लिए सबसे अच्छा स्कूल और ट्रेनिग कैंप है ।

            यही वो शहर है जहाँ के एक व्यापारी सर सेठ हुकुमचंदजी (कॉटन किंग) की तस्वीर आज भी लंदन कॉटन एक्सचेंज में मुख्य द्वार पर लगी है ।


            यहीं पर सर सेठ हुकुम चंद जी द्वारा स्वर्ण से निर्मित रथ है जो दुनिया में कही नहीं है और वो केवल महावीर जयंती पर ही निकलता है ।

            मोबाईल कंपनी एयर टेल ने अपनी मोबाइल सेवा की शुरुवात  सर्व प्रथम इंदौर से ही की थी ।
 

            अनंत चतुर्दशी पर रात भर चलने वाले विशाल चल समारोह और रंगपंचमी पर दिन भर रंगों से सरोबार हुडदंगीयों की विशाल सामूहिक गेर जिनके फिल्मांकन के लिये राजश्री प्रॉडक्शन जैसी नामी-गिरामी फिल्म प्रोड्यूसर संस्थाएँ विशेष आयोजन रखती हैं वह भी इसी इन्दौर शहर की विशिष्ट पहचान रही है ।


और अब इन्दौर का एक परिचय यह भी...!

  
इन्दौरियों को समर्पित - जन्म दिन विश करने का तरीका...
 
हिंदी में- जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाये भाई साब.


English में:- Happy Birthday Sir.


भोपाल में- जन्मदिन मुबारक हो,


मुम्बई में- भाई को Happy बड्डे, 


            और इंदौर  में -  हमारे भाई साब,  ऊर्जावान नेतृत्व के धनी, गो-माता के रक्षक, गरीबो के मसीहा, विकासपुरुष, बालाजी महाराज के परमभक्त, यारों के यार, युवा क्रन्तिकारी, दिलफेंक दिलदार, हरफनमोला हर परिस्थितियों में दोस्तों का साथ देने वाले, चाणक्य से भी तेज बुद्धि वाले, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सदैव जाग्रत रहने वाले, पुरे भारत में इंदौर का नाम रोशन करने वाले, निडर समाजसेवी, बाल्यकाल से ही ऊर्जावान, संघ के निडर सिपाही, युवा नेता, प्रखर वक्ता, महाँकाल के परमभक्त, सरल ह्रदय के स्वामी, याददास्त के धनी, युवा क्रांतिकारी, गरीबी से लड़ने वाले, एक बार प्रधानमंत्री से हाथ मिलाने वाले, मुख्यमंत्री के साथ फ़ोटो खिंचाने वाले, विधायक के सीधे हाथ, मीठी चटनी में समोसा खाने वाले, एक हाथ से उज्जैन से इंदौर तक टू-व्हीलर चलाने वाले, गर्मी में छांव करने वाले, घनघोर बारिश में भी पानी बांध देने वाले, ऐसे हमारे बड़े या छोटे भाई साब को जन्मदिन की भोत-भोत शुभकामनाएं...


इन्दौर गजब है - सब से अलग है ।
 

Thursday, June 9, 2016

जिंदगी के मायने...!


           एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई । जब उसे इसका आभास हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके समक्ष एक सूटकेस हाथ में लिये खडे हैं और उससे कह रहे हैं - चलो मेरे बच्चे, तुम्हारा समय पूरा हो गया है ।

           व्यक्ति बोला - इतनी जल्दी ! अभी तो मेरे सामने ढेरों प्लान पूरे करने के लिये बाकि हैं ।

            भगवान बोले - नहीं, अब कुछ नहीं, तुम्हारा समय पूरा हो चुका है ।

            व्यक्ति ने पूछा - इस सूटकेस में क्या है ?

            तुम्हारी सम्पत्ति - भगवान ने जवाब दिया ।

            आपका मतलब - मेरा सामान, कपडे, पैसे ?

            नहीं, वे तो कभी तुम्हारे थे ही नहीं । वे तो यहाँ पृथ्वी पर तुम्हारा समय गुजारने के माध्यम थे ।

            इसका मतलब मेरी यादें । व्यक्ति ने पूछा ?

            नहीं । वे सब तो समयाश्रित थी । भगवान ने फिर जवाब दिया । 

            तो फिर मेरा हुनर । व्यक्ति ने फिर पूछा ?

            ना... ना... वे तो परिस्थितियों की देन थे । भगवान ने फिर जवाब दिया ।

            अच्छा तो फिर इसमें मेरे मित्र और परिजन साथ होंगे । व्यक्ति ने फिर पूछा ?

            नहीं भाई, वे तो तुम्हारी जीवन यात्रा के राही थे । भगवान बोले ।

            तो फिर मेरी पत्नी और बच्चे । व्यक्ति ने फिर पूछा ?

            नहीं, वो तो तुम्हारे दिल में थे । भगवान ने फिर उसकी जिज्ञासा का समाधान किया । 

            तो फिर जरुर इसमें मेरा शरीर होगा । व्यक्ति ने फिर पूछा ?

            कैसा शरीर ? वह तो राख की अमानत है । भगवान का फिर जवाब मिला । 

            तो निश्चय ही इसमें मेरी आत्मा होगी । बडे विश्वास के साथ उसने फिर पूछा ?

            दुःख की बात है कि यहाँ भी तुम गलत हो, तुम्हारी आत्मा तो मेरी देन रही है । भगवान ने फिर जवाब दिया । 

            तब उस व्यक्ति ने आँखों में आंसू भरकर बडे दुःखी मन से ईश्वर से उस सूटकेस को खोलकर दिखाने का अनुरोध किया । ईश्वर ने जब उस सूटकेस को खोलकर दिखाया तो वह बिल्कुल खाली था ।
 
            टूटा दिल और गिरते आंसू के साथ उस व्यक्ति ने भगवान से पूछा- तो क्या इतने वर्षों में मेरा यहाँ कभी कुछ भी नहीं रहा ? हाँ- अब तुम ठीक सोच रहे हो । ऐसा कुछ भी कभी नहीं रहा जो तुम्हारा वस्तुविशेष के रुप में गिना जा सके ।

            तो फिर आखिर इतने वर्षों में मेरा क्या रहा ?  व्यक्ति ने फिर पूछा ?
तुम्हारे कार्य ! तुम्हारे वे सभी कार्य जो तुमने यहाँ रहते किये, वे सभी सिर्फ तुम्हारे रहे हैं । भगवान ने जवाब दिया... 

            इसलिये जब तक जीवित हो - जो कुछ भी अच्छे कार्य कर सकते हो, अवश्य करो । हमेशा अच्छे कार्यों के लिये सोचो और अपने प्रत्येक कार्य के लिये ईश्वर का धन्यवाद करो ।

            हमारी जिंदगी एक सादे कागज़ के समान है, जिस पर हर इंसान को स्वयं ही चित्रकारी करनी है ।

            "ईश्वर" ने हमें हमारे 'कर्म' की 'पेंसिल' देकर हमें चित्रकारी करने की सुविधा अवश्य दी है, परंतु सदैव ध्यान रखें...

            "ईश्वर" ने हमें ऐसा कोई रबर नहीं दिया है, जिससे हम अपनी बनाई चित्रकारी को मिटा सकें ।